उत्तराखंड की वादियों में यू तो घूमने की बहुत सी जगहे हैं, लेकिन आज बात हिदुस्तान की आखिरी दुकान और आखिरी गांव की करेंगे।
चमोली में इंडिया-चीन बॉर्डर पर बसा है देश का आखिरी गांव माणा। यहां की जिंदगी हिंदुस्तान के बाकी शहरों से बिल्कुल अलग है। बद्रीनाथ से करीब तीन किलोमीटर आगे समुद्र तल से लगभग 10 हजार फुट की ऊंचाई पर बसा है ये गांव। इस गांव की खूबसूरती देखकर आप भी हैरान रह जाएंगे। इसी गांव में है हिन्दुस्तान की आखिरी चाय की दुकान। जहां हर दिन सैलानी चाय की चुस्की लेने आते हैं। इस दुकान के बाद समूचे इलाके में गश्त करते हुए फौजी ही फौजी नजर आते हैं। यहां से कुछ दूरी पर ही भारत और चीन की सीमा शुरू हो जाती है।
माणा गांव की आबादी 400 के करीब है। यहां के ज्यादातर घरों को बनाने में लकड़ी का प्रयोग हुआ है। छत पत्थर के पटालों की बनी है। इन घरों की खूबी ये है कि ये मकान भूकंप के झटकों को आसानी से झेल लेते हैं। मकानों में ऊपरी मंजिल में घर के लोग रहते हैं। नीचे पशुओं को रखा जाता है। एक खासियत यहां की ये भी है चाय के बाद यहां सबसे ज्यादा शराब पी जाती है। यहां चावल से शराब बनाई जाती है। घर-घर में शराब बनती है।
माणा गांव का पौराणिक नाम मणिभद्र है। पर्यटक यहां अलकनंदा और सरस्वती नदी का संगम देखने भी आते हैं। गणेश गुफा, व्यास गुफा और भीमपुल भी यहां आकर्षण का केंद्र हैं। मई से अक्टूबर महीने के बीच बड़ी संख्या में टूरिस्ट यहां आते हैं। छह महीने तक यहां काफी चहल-पहल रहती है। बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद होने पर यहां पर आवाजाही बंद हो जाती है। इस गांव का नाता महाभारत काल से भी जुड़ा है। कहानी प्रचलित है कि, इस गांव से होते हुए ही पांडव स्वर्ग गए थे।
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